3 माह में 54 मुकदमे दर्ज, आर्मी कोर्ट में हुई थी मामलों की सुनवाई

किशोरसिंह चूली , रिटायर्ड पुलिस अधिकारी भास्कर न्यूज | बाड़मेर 1971 में भारत-पाक युद्ध के समाप्ति के दौरान मैं ट्रेनिंग करके लौटा था, पुलिस आरआई कार्यालय में ही ड्यूटी लगी थी। इस दौरान युद्ध में हमारे देश की सेना ने करीब 13 हजार वर्ग किलोमीटर से अधिक पाक में बाड़मेर-जैसलमेर व कच्छ सीमा के सामने वाला का इलाका जीत लिया था। जीत की खुशी साफ झलक रही थी। इसी दौरान सरकार ने आदेश निकाला कि पाकिस्तान से जीती गई जमीन पर भारतीय प्रशासक की नियुक्ति की जाए। पाक के छाछरो में थाना खोलने के लिए पुलिस अधिकारियों व आरक्षकों को नियुक्त करना था। बाड़मेर जिला मुख्यालय से इनको नियुक्त कर रहे थे। इस दौरान दस आरक्षकों का चयन किया गया। इसमें से एक नाम मेरा भी था। इसके अलावा एसपी सहित थानेदार व सहायक अधिकारी भी नियुक्त किए गए। कलेक्टर के तौर पर तत्कालीन आईएएस कैलाशदान रतनू को कमान सौंपी गई। यह पूरा लवाजमा बाड़मेर प्रशासन से अलग था। इनका काम पाक से जीती गई जमीन पर लॉ एंड ऑर्डर कायम करना और वहां शांति स्थापित करना था। हालांकि छाछरो का पूरा इलाका सेना के अंडर में था, लेकिन लॉ एंड ऑर्डर का कार्य पुलिस के सहयोग से कायम किया जाता था। 1971 के युद्ध में पाक इलाके में भारतीय सेना के प्रवेश पर वहां के स्थानीय एससी-एसटी, राजपूत, महाजन सहित अन्य लोगों ने खूब मदद की थी। 2 जुलाई 1972 को जब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने शिमला समझौता किया तो स्थानीय लोगों में डर का माहौल था। समझौते के तहत जीती हुई जमीन लौटाने की भी शर्त थी, इसके कारण छाछरो से आर्मी वापस बुला ली। थाना बंद कर पूरा 13 हजार वर्ग किलोमीटर का जीता हुआ इलाका वापस पाक को लौटा दिया गया। यह समझौता उन लोगों के लिए बहुत ही भारी पड़ा, जिन्होंने युद्ध में अपनों को खोया था और भारतीय सेना की इस उम्मीद के साथ मदद की थी कि हमारे अच्छे दिन आएंगे। सेना व थाना हटने के दौरान स्थानीय लोगों ने कहा था- अब हमारे नियति में जो लिखा है वो होगा लेकिन जीती हुई जमीन वापस लौटाना उचित नहीं। हमें उम्मीद थी भारत सरकार हमारे साथ रहेगी। प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर कैलाश दान रतनू को कमान सौंपी गई थी। इनका कार्यालय गडरा में स्थापित किया गया। रतनू कार्यालय अधीक्षक भीमसिंह चूली को अपने साथ ले गए और उन्हें विशेष परिस्थितियों में कलेक्टर का पावर भी दिया था। बाड़मेर पुलिस उप अधीक्षक छुगसिंह भाटी को छाछरो एसपी नियुक्त किया। इसके बाद चार उपनिरीक्षक व दस आरक्षक छाछरो थाने में नियुक्त किए गए। इनमें भोपाल सिंह राजपुरोहित को थानेदार की जिम्मेदारी दी और उनके नेतृत्व में खुमाण सिंह छाछरो, अनोपसिंह व धनराज जोशी उप निरीक्षक भेजे थे। इनके साथ 10 आरक्षक श्याम सिंह मुंगेरिया, किशोर सिंह चूली, आईदान सिंह तारातरा, भैरुसिंह सोढ़ा बावड़ी, छोटूराम विश्नोई कुड़ी, आईदान सिंह सोढ़ा बावड़ी, अखाराम राजपुरोहित रामसर, कंवराज सिंह सोढ़ा बावड़ी, तेजसिंह सोढ़ा तामलोर एवं खरताराम चौधरी चौहटन को भेजा गया। छाछरो में थाना स्थापित होने से लेकर शिमला समझौते तक 54 मुकदमे दर्ज हुए। इनमें पकड़े गए अधिकांश वे आरोपी थे जो युद्ध के दौरान भारत आ गए थे और यहां अपना परिवार सुरक्षित स्थानों पर छोड़कर वापस छाछरो सहित आसपास के क्षेत्रों में लूटपाट करने के लिए गए थे। युद्ध के दौरान जाति विशेष के अधिकांश लोग तो वहां से भाग गए थे लेकिन जो पीछे बचे थे, उन्होंने सेना और पुलिस की अच्छी मदद की। छाछरो थाने में दर्ज चोरी और लूटपाट के मुकदमों की आर्मी कोर्ट में वहीं पर सुनवाई होती थी। छाछरो तक पहुंचने के लिए न तो सड़क थी और न ही गाड़ियों के लिए रास्ता था। आर्मी ने लकड़ी के पाटे बिछाकर अस्थायी सड़क मार्ग बनाया था। मामलों की जांच के लिए पुलिस जाती थी, लेकिन गाड़ी आर्मी की होती थी और आर्मी के जवान साथ रहते थे। पूरा क्षेत्र आर्मी की निगरानी में ही था। 75 वर्षीय किशोर सिंह चूली पुलिस में एसआई पद से रिटायर हैं। 1971 के युद्ध में पाक के छाछरों के फतेह के दौरान वहां स्थापित थाने में चयनित 10 आरक्षकों में से आप भी एक थे। इन्होंने वहां नियुक्ति से लेकर भारत का थाना छाछरो में रहने तक वहां सेवाएं दी फिर शिमला समझौते के बाद बाड़मेर पुलिस लाइन लौटे। वर्तमान में राणी रूपादे संस्थान में शिक्षा व समाज उत्थान के कार्यों में लगे हुए हैं। (जैसा भास्कर के महेश गौड़ को बताया)