मेरे बेटे साहिल को बोरवेल में ही दफनाना पड़ा। जिंदगीभर ये मलाल रहेगा कि साहिल का शव मिल जाता तो क्रियाकर्म कर पाते। उसकी अस्थियां गंगाजी में विसर्जित कर देते। इतना कहते-कहते लक्ष्मण सिंह का गला भर आया। 15 साल पहले कोटपूतली की शाहपुरा तहसील के जगतपुरा गांव के रहने वाले लक्ष्मण सिंह का तीन साल का बेटा साहिल 150 फीट गहरे बोरवेल में गिर गया था। 1 महीने से ज्यादा चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बावजूद साहिल को बचाया नहीं जा सका। न ही शव निकाला जा सका। बोरवेल से जिंदगी बचाने के लिए चलाया गया ये संभवतया: सबसे लंबा रेस्क्यू ऑपरेशन था। हाल ही में कोटपूतली के कीरतपुरा गांव में बोरवेल में 170 फीट गहराई में फंसी चेतना (3) को बचाने के लिए 10 तक रेस्क्यू चला था। हालांकि बच्ची की जान नहीं बचाई जा सकी। वहीं साहिल को बचाने के लिए 1 महीने से भी लंबा रेस्क्यू ऑपरेशन चला था। दैनिक भास्कर ने साहिल के घरवालों, रेस्क्यू में शामिल लोगों से बात कर जाना कि 15 साल पहले हुआ क्या था? साहिल कैसे बोरवेल में गिरा? क्यों उसे निकाला नहीं जा सका? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… भास्कर टीम जयपुर से 55 किमी दूर जगतपुरा गांव पहुंची। यहां रामनिवास सुरेला मिले। रामनिवास ने बताया- 2009 में मेरे पिता कालूराम यहां के सरपंच थे। साहिल को बचाने के लिए चले रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान उन्होंने खुद अपने पिता के साथ यहां व्यवस्थाएं संभाली थी। रामनिवास ने बताया कि गांव के भंवरसिंह का 3 साल का पोता साहिल 9 नवंबर 2009 को 150 फीट नीचे बोरवेल में गिर गया था। साहिल के बोरवेल में गिरने की सूचना मिलते ही यहां तत्काल रेस्क्यू स्टार्ट कर दिया गया था। महीने भर से ज्यादा तक ये रेस्क्यू चला था, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई थी। आखिर में प्रशासन के समझाने पर सबने हार मान ली और साहिल को यहीं बोरवेल में ही मृत मानकर रेस्क्यू बंद करना पड़ा था। रामनिवास ने बताया कि साहिल के पिता का नाम लक्ष्मण सिंह है। वो अब जयपुर में ही रहते हैं। बोरवेल के अंदर देखने की कोशिश कर रहा था साहिल इसके बाद भास्कर टीम उसी खेत में पहुंची, जहां खुदे बोरवेल में साहिल गिरा था। ग्रामीण रामकरण ने बताया कि वो भी साहिल को बचाने के लिए चले रेस्क्यू ऑपरेशन में शामिल था। उसने यहां काफी खुदाई की थी और सुरंग बनाने में मदद की थी। रामकरण ने बताया कि 9 नवंबर 2009 की रात इस खेत में बोरवेल के पास काम चल रहा था। एक फावड़ा वहां पड़ा रह गया था। सुबह भंवरसिंह ने अपनी पोती को वो फावड़ा लेने यहां भेजा था। पोती के साथ भंवर सिंह का 3 साल का मासूम पोता साहिल भी यहां आ गया था। साहिल बोरवेल में झांक रहा था। अचानक बोरवेल के मुंह के पास पड़ी कंकरी पर पैर लगने से वो फिसल कर अंदर चला गया। ये देख उसकी बहन जोर-जोर से चिल्लाने लग गई थी। इसके बाद यहां मौके पर भारी भीड़ जमा हो गई थी। तब मैंने झुककर अंदर देखा तो बच्चे के दो पैर दिख रहे थे। इसके बाद प्रशासन को सूचना दी गई । हमने बोरवेल के बराबर में 200 फीट गहरा कुंआ खोद दिया था। कई बार अलग-अलग दिशा में सुरंग खोदने के बाद भी पहले तो बोरवेल ही नहीं मिला और दूसरा मिटटी बैठने लग गई थी। इससे रेस्क्यू टीमों को भी जान का ख़तरा था। इतना ही नहीं नीचे जोरदार बदबू भी आना स्टार्ट हो गई थी। यहीं वजह रही कि हम सबने हार मान ली। नहीं थे संसाधन, गांववालों ने हाथों से खोदी मिट्टी
इसी गांव के रहने वाले सत्यप्रकाश भिंडा ने बताया कि रेस्क्यू टीमों के साथ 40-50 से ज्यादा ग्रामीण भी बचाव कार्य में लगे थे। तत्कालीन अधिकारियों, ग्रामीणों और साहिल के घरवालों ने बैठकर साहिल सिंह को बोरवेल में ही मृत मानने का निर्णय कर लिया था। इसके बाद यहां खोदे गए कुएं और उस बोरवेल को मिट्टी से भर दिया गया था। गांव के रेस्क्यू में शामिल लोगों ने बताया कि 15 साल पहले आधुनिक मशीनें और संसाधन भी नहीं थे। तब रेस्क्यू टीमों के साथ ग्रामीणों ने मिलकर हाथों से मिट़्टी खोदी। करीब 200 फीट नीचे खोदते हुए बिना पाइपों के बोरवेल तक अलग-अलग दिशा में हाथों से ही एल टाइप सुरंगें बना दी थी। चार बहनों का इकलौता भाई था साहिल
इसके बाद रिपोर्टर ने साहिल के पिता लक्ष्मण सिंह से फोन पर बात की। लक्ष्मण सिंह ने बताया कि वो झोटवाड़ा एरिया में ट्रैक्टर चलाते हैं। दिन भर घर से बाहर रहते हैं। काफी समझाने के बाद वे मिलने के लिए तैयार हुए। लक्ष्मण सिंह ने बताया– चार बेटियों के साथ साहिल इकलौता बेटा था। साहिल की मौत के 5 साल बाद भगवान ने उन्हें फिर से बेटा दिया था। साहिल तब 3 साल का था। वो अपनी बहन के साथ बोरवेल के पास गया था। अचानक बोरवेल में गिर गया। साहिल को बोरवेल में ही दफनाना पड़ा। जिंदगीभर ये मलाल रहेगा कि साहिल का शव मिल जाता तो क्रियाकर्म कर पाते। उसकी अस्थियां गंगाजी में विसर्जित कर देते। लक्ष्मण सिंह ने बताया कि– हादसे के बाद प्रशासन ने हमारी कोई सहायता नहीं की। न ही कोई मुआवजा दिया था। अब देखिए उस वक्त की मीडिया रिपोट्र्स साहिल रेस्क्यू ऑपरेशन की पूरी कहानी को जानने के लिए हमने पुराने अखबार खंगाले। दैनिक भास्कर का ही 8 दिसंबर 2009 का अंक मिला। इसमें ‘आखिर प्रशासन नाकाम’ शीर्षक से एक खबर छपी थी। इसी खबर में लिखा था कि 29 दिन बाद भी साहिल का शव बोरवेल से नहीं निकाला जा सका। हैदराबाद से आई नेशनल जिओ फिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के एक्सपट्र्स की टीम ने भी रेस्क्यू ऑपरेशन में हाथ खड़े कर दिए थे। इसी खबर में लिखा था कि रेस्क्यू टीमों को बोरवेल के बराबर कुंआ खोदने में करीब 15 दिन, एल टाइप सुरंग खोदने में 3 दिन और दिशा बताने में 12 दिन लगे थे। इसके बाद भी रेस्क्यू टीम बोरवेल नहीं ढूंढ पाई थी। इसके बाद हमें 9 दिसंबर 2009 का अखबार देखा। इसमें ‘साहिल बचाओ अभियान बंद, सामान समेटा’ हेडलाइन से खबर लगी थी। इस खबर में लिखा था– 30 दिनों की नाकामी के बाद शाहपुरा के जगतपुरा गांव में बोरवेल में फंसे साहिल को बचाने के अभियान को प्रशासन ने बंद कर दिया है और सामान समेटना स्टार्ट कर दिया है। ……… राजस्थान में फेल बोरवेल रेस्क्यू ऑपरेशन की ये खबरें भी पढ़िए… 1. 10 दिन बाद बोरवेल से बाहर आई चेतना की मौत:अचेत अवस्था में कपड़े में लपेटकर निकाला, 170 फीट गहराई में फंसी थी कोटपूतली में बोरवेल में फंसी चेतना चौधरी (3) को 170 फीट गहराई से दस दिन बाद बाहर निकाल लिया गया है। हालांकि बच्ची की जान नहीं बचाई जा सकी। एनडीआरएफ की टीम ने बोरवेल के समानांतर एक सुरंग खोदकर बच्ची को बाहर निकाला। पूरी खबर पढ़िए… 2. बोरवेल में फंसे 5 साल के आर्यन की मौत:57 घंटे बाद देसी जुगाड़ से बाहर खींचा, 3 दिन से भूखा-प्यासा था; मां रोते-रोते बेहोश हुई राजस्थान के दौसा जिले में 3 दिन से बोरवेल में फंसे 5 साल के मासूम आर्यन की मौत हो गई है। आर्यन को करीब 57 घंटे बाद बुधवार रात 11:45 बजे बोरवेल से बाहर निकाला गया था। उसे एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम से लैस एम्बुलेंस से हॉस्पिटल ले जाया गया। पूरी खबर पढ़िए…
