आज जब शहर बढ़ रहे हैं और पेड़ घट रहे हैं, ऐसे समय में हरियाली बढ़ाना जरूरी हो गया है। इसी सोच के साथ हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड ने चंदेरिया लेड जिंक स्मेल्टर में मियावाकी तकनीक से एक मिनी फॉरेस्ट बनाया है। मियावाकी पद्धति जापानी वैज्ञानिक डॉ. अकीरा मियावाकी द्वारा विकसित की गई है, जिसमें देशी पेड़-पौधों को पास-पास लगाकर घना जंगल तैयार किया जाता है। खास बात यह है कि इस तरीके से जंगल केवल 2 से 3 साल में तैयार हो जाता है। 13,750 पेड़ लगाए गए, पर्यावरण को मिली संजीवनी हिंदुस्तान जिंक ने इस परियोजना के तहत एक हेक्टेयर क्षेत्र में 13,750 देशी पेड़-पौधे लगाए हैं। इसमें 45 से ज्यादा प्रजातियों के पेड़, झाड़ियां और छोटे पौधे शामिल हैं। इससे क्षेत्र की जैव विविधता में इजाफा हुआ है, कार्बन उत्सर्जन में कमी आई है और मिट्टी व जल संरक्षण को भी मजबूती मिली है। चुनौतियां रहीं, लेकिन इरादे मजबूत थे इस परियोजना में सबसे बड़ी चुनौती थी उस जमीन की सफाई, जिस पर यह जंगल बनना था। वहां ढेर सारी खरपतवार (ढाब) फैली हुई थी। पहले उसे हटाया गया, फिर मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए उसमें गोबर खाद, वर्मीकम्पोस्ट और अन्य जैविक तत्व मिलाए गए। इसके बाद पेड़ लगाए गए, जिन्हें धीरे-धीरे बढ़ने के लिए अनुकूल वातावरण दिया गया। भविष्य में होंगे बड़े फायदे इस मिनी फॉरेस्ट से कई लाभ मिलने की उम्मीद है। यह आसपास की हवा को शुद्ध करेगा। जमीन की नमी और गुणवत्ता बढ़ेगी। पारंपरिक बागवानी के मुकाबले इसमें रखरखाव का खर्च बहुत कम है। जैव विविधता के लिए यह एक सुरक्षित आश्रय स्थल बनेगा। नियमित देखरेख और दीर्घकालीन सोच हिंदुस्तान जिंक इस मिनी फॉरेस्ट की देखभाल के लिए नियमित गतिविधियां कर रही है, जैसे समय पर पानी देना, खरपतवार हटाना, खाद डालना और वनस्पति और जीवों की निगरानी करना। कंपनी का लक्ष्य है कि अगले 2-3 साल में यह जंगल पूरी तरह आत्मनिर्भर हो जाए। हरित भारत की ओर एक कदम चंदेरिया स्मेल्टर का यह मियावाकी प्रोजेक्ट न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक सराहनीय पहल है, बल्कि यह दिखाता है कि औद्योगिक क्षेत्र भी प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाकर काम कर सकते हैं। यह प्रोजेक्ट देश के अन्य उद्योगों और संस्थानों के लिए एक प्रेरक उदाहरण है कि पर्यावरण बचाने के लिए ठोस कदम कैसे उठाए जा सकते हैं।
