राजस्थान में कस्तूरबा गांधी स्कूलों में छात्राओं के लिए खरीदी गई लॉन्ड्री मशीनें 9 महीने से पैक पड़ी हैं। सरकार ने छात्राओं के कपड़े धोने के लिए 5.85 करोड़ रुपए से 129 स्कूलों के लिए ये मशीनें खरीदी थीं। लेकिन इनमें से सिर्फ 16 स्कूलों को छोड़ दिया जाए तो बाकी स्कूलों में ये मशीनें ज्यों की त्यों पैक पड़ी हुई हैं। ‘दैनिक भास्कर’ ने मौके पर जाकर तफ्तीश की तो पता चला कि ये मशीनें खरीद तो ली गई हैं, मगर यह तब ही चल सकती हैं जब स्कूलों में बिजली का थ्री-फेज कनेक्शन हो। नतीजतन, कुछ स्कूलों को छोड़ दिया जाए तो शेष में कनेक्शन नहीं होने से लगभग 9 महीने से ये मशीनें बेकार पड़ी हैं। दरअसल, पिछली सरकार में प्रदेश के 129 कस्तूरबा गांधी आवासीय स्कूलों में कपड़े धोने के लिए लॉन्ड्री मशीनें लगाने का निर्णय लिया गया था। टेंडर पिछली ही सरकार में किए गए। आखिरकार नई दिल्ली की फर्म अवतार एंटरप्राइजेज को 12 फरवरी 2024 को वर्क ऑर्डर दिया गया। सरकार ने 5 करोड़ 85 लाख में ये मशीनें खरीदी। सरकार ने 129 स्कूलों में लॉन्ड्री मशीनें लगवाई, 16 में ही काम कर रही हैं 129 कस्तूरबा स्कूलों में ये मशीनें लगवाई गईं। मगर इनमें से सिर्फ 16 ही ऐसे स्कूल हैं जहां ये काम कर रही हैं। इसके अलावा 8 ऐसे स्कूल हैं जहां थ्री फेज कनेक्शन तो है लेकिन मशीन को अबतक इंस्टॉल कर डेमाे नहीं किया गया है। वहीं, 105 स्कूल तो ऐसे हैं जहां अबतक थ्री फेज कनेक्शन ही नहीं हैं। ऐसे में वहां मशीनें पैक ही पड़ी हैं। ये मशीनें 15 किलो क्षमता की हैं। 151 लीटर के ड्रम कैपेसिटी वाली एक मशीन का वजन 700 किलो है। एक मशीन की कीमत 4.5 लाख रुपए से ज्यादा है। फ्रंट डोर पर अप्रैल के पहले सप्ताह की डिस्पैच तारीख, पूरे गर्मी-बरसात बाहर ही पड़ी रहीं भास्कर की टीम ने कस्तूरबा गांधी आवासीय स्कूलों में जाकर हकीकत जानी तो सामने आया कि लॉन्ड्री मशीनें खुले में ही कवर से ढकी हुई हैं। कवर हटाकर देखा तो मशीनें बिलकुल वैसे ही पैक थीं, जैसी लगभग 9 महीने पहले सप्लाई की गई थीं। ज्यादातर के फ्रंट डोर पर अप्रैल के पहले सप्ताह की डिस्पैच तारीख लिखी थी। स्कूल की शिक्षिकाओं और बालिकाओं से पूछा गया तो उनका यही कहना था कि मशीनें जब से आई हैं तब से इसी तरह यहां पर ही रखी हुई हैं। भास्कर जब स्कूलों में पहुंचा तो कई स्कूलों में बच्चियां कपड़े धोती दिखीं। स्कूलों में वॉशिंग एरिया के पास ही मशीनें रखी हुई हैं। मशीनें इतनी बड़ी और भारी हैं कि सीमेंट का अस्थाई स्टैंड बनाकर उन्हें बाहर खुले में ही रख दिया गया है। कई स्कूल ऐसे भी थे जिनमें कनेक्शन था मगर डेमो नहीं हुआ था, इसलिए मशीनें पैक थी। सबसे बड़ी बात यह है कि पिछले 9 माह से ये मशीने सर्दी, गर्मी और बरसात बाहर खुले में ही पड़ी हैं। जो भी देरी, वह विभाग स्तर पर : सप्लायर फर्म “कमी विभाग स्तर पर है, सप्लायर के तौर पर मेरे हिस्से पर कहीं कोई कमी नहीं है। हमने तय समय पर मशीनें पहुंचा दी हैं। जो भी देरी या कमी है वो विभाग के स्तर पर है। “
-वरुण अग्रवाल, मालिक, अवतार एंटरप्राइजेज, दिल्ली “कुछ जगह कनेक्शन के लिए डिमांड राशि भर दी है। कुछ जगह डिमांड राशि ज्यादा है, इसके लिए अतिरिक्त वित्तीय प्रावधान करके बिजली विभाग से बात करेंगे।”
-अविचल चतुर्वेदी, राज्य परियोजना निदेशक एवं आयुक्त, राजस्थान स्कूल शिक्षा परिषद
