कश्मीर की पश्मीना शॉल, जिसे कानी शॉल भी कहते हैं। कहते हैं ये शॉल अंगूठी के अंदर से निकल जाती है। पश्मीना शॉल जयपुर लेकर पहुंचे नेशनल अवॉर्डी नूर भट ने इसका लाइव डेमो दैनिक भास्कर को करके दिखाया। उन्होंने बताया पश्मीना शॉल को हाथ से बनाया जाता है। पश्मीना शॉल ही अंगूठी से निकल सकती है। दूसरी शॉल होती तो फंस जाएगी। नूर भट ने इस दौरान चांदी से बनी शॉल भी दिखाई। बता दें कि जयपुर के राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में एक एग्जीबीशन लगी थी। इसमें नूर भट भी पश्मीना शॉल लेकर आए हैं। उन्होंने बताया- पश्मीना शॉल में अब काफी वैरायटी शामिल हो गई है। मुख्य वैरायटी की बात की जाए तो पशमीना में एक प्लेन शॉल होता है। यह सारा शॉल हाथ से ही बनाया जाता है। सबसे पहले महिलाएं शॉल बनाने के लिए शिफिंग करती है। उसको वीव करके बनाया जाता है। उन्होंने कानी वीव शॉल दिखाते हुए बताया- इसके लिए मुझे 2008 में राष्ट्रीय अवॉर्ड मिल चुका है। इसके लिए 2005 में नेशनल मिनिस्टर सर्टिफिकेट मिला। यह पूरी तरीके से हाथ से बना पशमीना शॉल है। नूर भट ने बताया- इस शॉल की शुरुआत से लेकर अंतिम रूम देने तक कम से कम 7 महीने से 1 साल का समय लगता है। स्वाभाविक है कि जिस शॉल को हाथ से बनाया जाए। उसको बनाने में इतना समय लगेगा। वह पशमीना बेशकीमती होगा। इस शॉल की कीमत 120000 रुपए है। यदि आप जेंड्स साइज (बड़ा साइज 3 गज) की बात करें तो कीमत डबल हो जाएगी। दो से ढाई लाख रुपए का शॉल होगा। नूर भट ने कहा- कीमत की बात की जाए तो आंखों की रोशनी की क्या कीमत लगाई जाएगी। इसलिए यह हमारे लिए महंगे नहीं है। सोजनी शॉल बनाना सुईं से कुआं खोदने के बराबर नूर भट ने एक अन्य सोजनी शॉल दिखाते हुए बताया- इसे बहुत छोटी सुईं से बनाया जाता है। इस पर बहुत ही महीन कारीगरी की जाती है। इस बारीक काम को करने में पूरा 1 साल लगता है। यह सुई से कुआं खोदने के बराबर है। इसके लिए कारीगर को बहुत ही पेशेंसे चाहिए। एक ही सुई से एक ही रफ्तार में बारीकी का ध्यान रखते हुए इसे तैयार किया जाता है। इसको सोजनी जामा कहा जाता है। इसका बेस भी पशमीना होता है। बस इसको बनाने वाले हाथ अलग-अलग होते हैं। इसे ढीला और टाइट दोनों तरह से बनाया जाता है। इस शोल की कीमत 125000 है। चांदी से बनी जरी शॉल उन्होंने बताया- जरी शॉल को चांदी के तार से बनाया जाता है। इस पर कारीगर चांदी के तार का काम करते हैं। जो की बहुत ही सुंदर लगता है। इसको तीला शॉल भी बोला जाता है। इस शॉल की कीमत शॉल पर किए गए काम के अनुसार तय होती है। यह काम अक्सर तोले के हिसाब से किया जाता है। कारीगर को तोले के हिसाब से चांदी दी जाती है। तोले के हिसाब से कारीगर शॉल की डिजाइन तय करता है। यह शॉल पूरी तरह से शुद्ध चांदी की तार से बनाया जाता है। इसकी शुरुआती की 22000- 25000 है। जो लाखों रुपए और इससे ज्यादा भी हो सकती है। सीजन में ही होती है बिक्री नूर भट ने बताया- यह सीजनल व्यापार है। सरकार ने इसके लिए बहुत ही रिसोर्स रखे हैं। अभी भी गवर्नमेंट के रिसोर्सेस से ही मैं जयपुर में यहां अपने कश्मीरी पशमीना शॉल को शोकेस कर रहा हूं। मैं अपना सामान डिस्प्ले कर सकूं और लोगों को यह बता सकूं कि हम क्या बनाते हैं। हमारे पास क्या-क्या है। अक्सर लोग शॉल को सर्दी में ही या तेज ठंड में ही उसे करते हैं। शॉल का नाम पश्मीना कैसे पड़ा? पश्मीना शब्द फारसी के ‘पश्म’ शब्द से बना है, जिसका मतलब होता है ऊन। पश्म का मतलब सिलसिलेवार तरीके से ऊन की बुनाई। पश्मीना ऊन से बनी इस शॉल को लकड़ी की सलाइयों से बुना जाता है। इन्हीं सलाइयों को कानी कहते हैं। इसलिए इस बेशकीमती शॉल का नाम पश्मीना शॉल/कानी शॉल पड़ा। कानी शॉल बनाने के लिए पश्मीना के रंग बिरंगी ऊन को चरखे की मदद से कानी पर लपेट हैंडलूम पर चढ़ाया जाता है। इस शॉल का इतिहास काफी पुराना है। मुगल इसे काफी पसंद करते थे। कहा तो यह भी जाता है कि मुगलों के जमाने में 40 हजार लोग मिलकर कानी शॉल की बुनाई किया करते।
