राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्थापना और शताब्दी वर्ष के अवसर पर रविवार को नगर की सार्दुलपुरा, कुष्णापुरी, सरियादेवी और महाकाली बस्तियों में बौद्धिक सत्रों के बाद पथ संचलन का आयोजन किया गया। इन चारों स्थानों से निकले पथ संचलन में 600 से अधिक स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश में भाग लिया। स्वयंसेवकों ने इस दौरान अनुशासन, एकता और राष्ट्रनिष्ठा का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया। पथ संचलन से पहले, अतिथियों ने डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार, सदाशिव गोलवरकर और प्रभु राम के चित्रों पर माल्यार्पण किया। सिर पर टोपी और हाथों में लाठी लिए स्वयंसेवकों की कदमताल और अनुशासन ने सभी को प्रभावित किया। जिस मार्ग से संचलन गुजरा, वहां लोगों ने पुष्प वर्षा कर स्वागत किया और ‘भारत माता की जय’ के नारों से वातावरण गूंज उठा। प्रत्येक बस्ती का पथ संचलन मार्ग अलग था और मुख्य वक्ताओं ने बौद्धिक सत्रों को संबोधित किया। सार्दुलपुरा बस्ती में सुबह 9:30 बजे शस्त्र पूजन और बौद्धिक सत्र के बाद पथ संचलन संतोषी माता चौक से शुरू होकर सार्दुलपुरा कॉलोनी, शास्त्री नगर, अमर नगर, सैनिकवास होते हुए नयावास से पुनः संतोषीमाता चौक पर समाप्त हुआ। इस बस्ती में सेवानिवृत्त अध्यापक गुलाबसिंह राठौड़ मुख्य अतिथि थे, जबकि प्रांत सह घोष प्रमुख अनिल और जिला संघ चालक डॉ. जगदीश आर्य (सेवानिवृत्त वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक) ने आतिथ्य किया। मुख्य वक्ता अनिल ने अपने संबोधन में कहा कि “एकम् सत्यं विप्रा बहुधा वदन्ति” और “सर्वे भवन्तु सुखिनः” हमारे हिन्दू दर्शन के मूल तत्व हैं, जो भारत की पहचान हैं। उन्होंने बताया कि यही हमारा राष्ट्रीय विचार है, जिसे लेकर डॉ. हेडगेवार ने 1925 में नागपुर में संघ का बीज बोया था। आज 2025 में, 100 वर्षों की यात्रा पूरी करते हुए, यह एक विशाल वटवृक्ष के रूप में हमारे सामने उपस्थित है और एक नए क्षितिज की ओर बढ़ रहा है।