पिछली कांग्रेस सरकार में बने 17 नए जिलों में 9 जिलों और तीनों नए संभागों को भजनलाल सरकार ने शनिवार को रद्द कर दिया। लेकिन 8 नए जिलों को यथावत रखा। कानून मंत्री जोगाराम पटेल ने इसके पीछे केवल यह तर्क दिया है कि राष्ट्रीय मापदंडों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया गया है। सरकार के इस फैसले के पीछे उन 8 जिलों से आने वाले विधायक-मंत्रियों के सियासी कद से जोड़कर भी देखा जा रहा है। साथ ही जिन जिलों को खत्म करने का फैसला लिया है, उसके पीछे भी कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। 9 जिले, 3 संभाग खत्म करने और 8 को बनाए रखने में किस विधायक का क्या प्रभाव रहा, पढ़िए इस रिपोर्ट में… किस आधार पर जिले बने और किस आधार पर हटे, खुलासा नहीं पिछली गहलोत सरकार में 17 नए जिले किस आधार पर बने और अब भजनलाल सरकार में किस आधार पर खत्म किए गए, इसके बारे में दोनों ही सरकारों ने कोई खुलासा नहीं किया है। पिछली गहलोत सरकार ने जब नए जिलों की घोषणा की थी तो इनमें से कई क्षेत्रों निवासियों ने संबंधित क्षेत्र को जिला बनाने की मांग तक नहीं की थी। गहलोत सरकार ने नए जिलों के गठन के लिए रिटायर्ड आईएएस रामलुभाया की अध्यक्षता में जो कमेटी बनाई थी, उस कमेटी की रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नहीं की गई। इधर, बीजेपी सरकार ने भी 9 जिलों को खत्म करने और 8 को जिला बनाए रखने को लेकर सब कमेटी ने किन सुझावों पर विचार कर ये फैसला लिया, यह भी सार्वजनिक नहीं हुआ है। दूदू और खैरथल-तिजारा दोनों ही छोटे जिले, लेकिन एक बचा एक हटा गहलोत सरकार के घोषित जिलों में दूदू और खैरथल-तिजारा का क्षेत्र बहुत छोटा था। दूदू डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा का क्षेत्र है और खैरथल-तिजारा विधायक महंत बालकनाथ का। गौरतलब है कि दूदू को जिला बनाने पर खूब विवाद हुआ था। दूदू में केवल तीन तहसील आती हैं। इतने छोटे से इलाके को जिला बनाने पर सवाल भी उठे थे। जब भजनलाल सरकार ने जिलों की समीक्षा के दौरान छोटे क्षेत्रों वाले जिलों की खत्म करने बात कही थी, तो लग रहा था कि दूदू और खैरथल-तिजारा दोनों पर सबसे अधिक संकट है। वहीं, साल की शुरुआत में पुलिस मुख्यालय की ओर से राज्य सरकार को भेजी एक समीक्षा रिपोर्ट में भी दूदू और खैरथल-तिजारा से जिले का दर्जा हटाने की मांग की थी। रिपोर्ट में कहा था कि दोनों जिले दो से तीन पुलिस थाना क्षेत्रों तक सीमित हैं। यहां एक सीओ या डिप्टी एसपी का पद ही पर्याप्त है। एएसपी और एसपी का कार्यक्षेत्र नहीं बनता है। इस सरकार में जिलों की समीक्षा के लिए जून, 2024 में बनी सब कमेटी में डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा को संयोजक बनाया गया था। तीन महीने बाद सितंबर में बैरवा कमेटी से हट गए। इससे संकेत मिल गए कि दूदू का जिला बने रहने में अब खतरा है। ऐसा ही हुआ। सरकार ने दूदू को जिलों की सूची से बाहर कर दिया। इधर, बीजेपी सूत्रों के अनुसार, तिजारा से बीजेपी विधायक महंत बालकनाथ ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया, जिसके चलते सरकार खैरथल-तिजारा से जिला का दर्जा नहीं हटा पाई। बीजेपी के 3 और कांग्रेस के 3 विधायकों के जिले खत्म जयपुर ग्रामीण और जोधपुर ग्रामीण को छोड़ दें तो बीजेपी के 3 विधायक और उतने ही कांग्रेस विधायक अपने क्षेत्र के जिले नहीं बचा पाए। दूदू के अलावा केकड़ी और शाहपुरा, तीनों पर बीजेपी विधायक हैं। इन तीनों जिलों को खत्म कर दिया है। वहीं 3 कांग्रेस विधायक भी अपना जिला नहीं बचा पाए। केकड़ी : इस क्षेत्र में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व चिकित्सा मंत्री रहे रघु शर्मा का प्रभाव है। इस कारण ही गहलोत सरकार ने केकड़ी को जिला घोषित किया था। तब बीजेपी नेताओं ने ही आरोप लगाया था कि अपने विधायकों-मंत्रियों को खुश करने के लिए नए जिले घोषित किए गए हैं। कांग्रेस की इस रणनीति का लाभ रघु शर्मा को नहीं मिला। वे चुनाव हार गए। इस सीट से बीजेपी जीत गई और शत्रुघ्न गौतम विधायक चुने गए। राजनीतिक नजरिए से देखें, तो कांग्रेस पर लगाए अपने आरोप के कारण केकड़ी को जिलों की सूची से बाहर किया है। शाहपुरा : शाहपुरा (भीलवाड़ा) का हाल भी केकड़ी के जैसा ही था। इस सीट से तब बीजेपी के वरिष्ठ नेता और विधानसभा अध्यक्ष रहे कैलाश मेघवाल विधायक थे। कैलाश मेघवाल ने सियासी संकट के दौरान अशोक गहलोत का खुलकर पक्ष लिया और बीजेपी नेताओं का मानना था कि इसी तोहफे में शाहपुरा को जिला बनाया गया। मेघवाल से बीजेपी आलाकमान खुश नहीं था और पिछले विधानसभा चुनाव (2023) में उनका टिकट कटा। यहां से बीजेपी की टिकट पर लालाराम बैरवा जीते। लेकिन अब शाहपुरा से जिले का दर्जा भी छीन लिया गया है। कांग्रेस विधायकों वाले 3 नए जिलों पर कैंची, सांचौर के पीछे भी सियासी मायने सूत्रों के अनुसार, नीम का थाना, गंगापुर सिटी और अनूपगढ़ में कांग्रेस के विधायकों के कारण बीजेपी की सरकार को तीनों से जिले का दर्जा हटाने में जोर नहीं आया। इधर, सांचौर में अशोक गहलोत के करीबी और पिछली सरकार में वन मंत्री रहे सुखराम विश्नोई का प्रभाव है। बीजेपी ने इस सीट पर भी अपना वही आरोप दोहराया था कि सुखराम को खुश करने के लिए सांचौर को जिला बना दिया गया। हालांकि अब इस सीट से जीवाराम चौधरी निर्दलीय विधायक हैं। चौधरी ने बीजेपी को हराने में बड़ा रोल निभाया। तीसरी बार विधायक बने चौधरी पहले इस सीट से बीजेपी की टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं और दो बार निर्दलीय के रूप में। राजे के करीबी और बीजेपी के बागी निर्दलीय विधायक का क्षेत्र बचा जिन जिलों को यथावत रखा गया है, इसमें केवल एक को छोड़कर बाकी सब जगह बीजेपी विधायक ही काबिज हैं। लेकिन डीडवाना एकमात्र जिला है, जहां बीजेपी के बागी और वसुंधरा राजे के करीबी रहे सीनियर नेता यूनुस खान हैं। हालांकि डीडवाना-कुचामन से जिले का दर्जा नहीं हटाने के पीछे और भी सियासी कारण हैं। खैरथल-तिजारा में अनोखा मेल खैरथल-तिजारा में बीजेपी-कांग्रेस का अनोखा मेल है। खैरथल कस्बा किशनगढ़बास विधानसभा क्षेत्र में आता है, जहां मौजूदा विधायक कांग्रेस के दीपचंद खैरिया हैं। तिजारा सीट पर महंत बालकनाथ बीजेपी के विधायक हैं। जिले का दर्जा बचाने में कांग्रेस के विधायक खैरिया को महंत बालकनाथ के प्रभाव का फायदा मिला है। जिला बने रहने की सूची में बीजेपी विधायकों के बीच खैरिया एकमात्र कांग्रेस विधायक हैं। बालोतरा (पचपदरा विधानसभा क्षेत्र) के विधायक अरुण चौधरी, ब्यावर के शंकर सिंह रावत, डीग के डॉ. शैलेश सिंह, फलोदी पब्बाराम विश्नोई, सलूंबर की शांता अमृतलाल मीणा और कोटपूतली-बहरोड़ में हंसराज पटेल व डॉ. जसवंत सिंह यादव विधायक हैं। सभी विधायक बीजेपी के हैं। इन क्षेत्रों को जिलों की सूची में शामिल रखकर सभी बीजेपी सरकार ने अपने विधायकों को राहत दी है। विधायक भी दबाव में थे कि उनके क्षेत्र से कहीं जिलों का दर्जा न छिन जाए। सियासी जानकारों का कहना है कि बीजेपी सरकार ने अपने विधायकों को सीधे तौर पर फायदा दिया है। गहलोत सरकार के बनाए 3 नए निगमों पर भी गिर सकती है गाज
पिछली अशोक गहलोत सरकार ने जयपुर, जोधपुर और कोटा निगमों का नए सिरे से परिसीमन करवाकर दो-दो हिस्सों में बांट दिया था। इससे जयपुर, कोटा और जोधपुर में 1-1 नए निगम बन गए थे। जिलों की समीक्षा के बाद 9 जिले खत्म करने से अब नजरें तीनों शहरों के नए निगमों पर जा टिकी हैं। बीजेपी सूत्रों के अनुसार जल्द ही पिछली गहलोत सरकार का तीनों शहरों में नए निगमों को खत्म कर वापस पुराने रूप में एक-एक निगम बनाया जा सकता है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने भी विभाग से इस संबंध में परीक्षण कर रिपोर्ट मांगी थी। विभाग रिपोर्ट तैयार कर रहा है। यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा का कहना है कि दो-दो नगर निकाय बनने से विरोध और शिकायतें, दोनों सामने आ रहे हैं। इसको लेकर अब उनकी आवश्यकता और मापदंडों का परीक्षण किया जा रहा है। उनके अनुसार, प्रदेश में पिछली सरकार ने नगर पालिकाओं को लेकर परिसीमन किया, लेकिन इनमें कई विसंगतियां हैं। वार्डों में जनसंख्या या मतदाताओं की संख्या में करीब 300 प्रतिशत तक का अंतर है। सरकार चाहती है, यह अंतर 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। यह भी पढ़ेंः गहलोत के बनाए 9 जिले-3 संभाग भजनलाल ने खत्म किए:21 महीने पहले बने थे; सरकार ने कहा- उपयोगिता नहीं थी, कांग्रेस बोली- फिर बनाएंगे कांग्रेस सरकार के वक्त बने नए जिलों में से 9 जिलों और 3 संभागों को भजनलाल सरकार ने कैंसिल कर दिया है। अशोक गहलोत ने मार्च 2023 में इन जिलों और संभागों को बनाने का ऐलान किया था…(CLICK करें)
