बॉर्डर पार कर 4 घंटे में पाकिस्तान के सौ किलोमीटर अंदर पहुंच गए थे, पाकिस्तानी सेना उलटे पांव भाग रही थी। पांचवें घंटे में तो हमने बाखासर के रण से सिंध प्रांत के सबसे बड़े कस्बे छाछरो (Chacharo Raid) पर कब्जा कर तिरंगा फहरा दिया था। पाकिस्तान ने इसकी कल्पना भी नहीं की थी। भारत ने वहां अपना पुलिस थाना, तहसील हेडक्वार्टर बनाया। पोस्टल इंडेक्स नंबर तक जारी कर दिया था। आज भी वह समय याद करते हैं तो सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है, लेकिन 1972 के शिमला समझौता में छाछरो पाकिस्तान को वापस लौटाने का मलाल आज भी है। यह कहना है 1971 के युद्ध में छाछरो पर विजय पाने वाली भारतीय 10 पैरा (स्पेशल फोर्सेज) में शामिल रहे पूर्व 10 पैरा कमांडो मालम सिंह राठौड़ का। हालिया तनाव के बीच भास्कर टीम मुनाबाव से करीब गांव रामसर पहुंची तो उन जांबाज योद्धाओं से हमारी मुलाकात हुई, जिन्होंने 1971 की जंग में जीत दिलाई थी। सीजफायर पर लोग बोले- अच्छा होता लड्डू अगर लाहौर-कराची में खाते, बॉर्डर के जिलों की देखिए ग्राउंड रिपोर्ट सीजफायर की घोषणा के तुरंत बाद बॉर्डर के हालातों का जायजा लेने हम मुनाबाव की तरफ बढ़ रहे थे। तभी बीच रास्ते रामसर गांव के बारे में पता चला। 10 हजार की आबादी वाले इस बड़े गांव में मालम सिंह राठौड़ की तरह युद्ध में हिस्सा लेने वाले कई जांबाज पूर्व सैनिक हैं। यहां के लोग भी उतने ही बड़े योद्धा हैं, जिन्होंने उस दौर में सेना की मदद की। उनके पास युद्ध के इतने किस्से मौजूद हैं, जिन्हें एक रिपोर्ट में नहीं समेट सकते। रामसर गांव में पहुंचते ही मालम सिंह राठौड़ (80) से बात शुरू हुई। उन्होंने कहा कि अभी यह मौका था, पाकिस्तान काे खत्म करने का। अगर हम चाहें तो एक दिन में लाहौर तक पहुंच कर पाकिस्तान फतह कर सकते हैं। हमारी सेना अब और मजबूत हुई है। हमने 1971 में पाकिस्तान को छोड़ा तो वह अपनी हरकतों से आज तक बाज नहीं आया। अब फिर छोड़ेंगे तो यह अपनी आने वाली पीढ़ियों को परेशान करेगा, आतंक फैलाएगा। 1971 के छाछरा युद्ध के बारे में जब पूर्व पैरा कमांडो से बात की तब, उन्होंने किस तरह पाकिस्तान में घुस कर कब्जा किया था उसके बारे में बताया। डकैत ने दिया भारतीय सेना का साथ
मालम सिंह बताते हैं 1971 में छाछरा पर कब्जा करने के लिए जयपुर के पूर्व महाराजा ब्रिगेडियर भवानी सिंह के नेतृत्व में 11 इन्फैंट्री डिवीजन, 330 ब्रिगेड, 85 ब्रिगेड, 31 ब्रिगेड, 17 ग्रेनेडियर्स और 10 पैरा एस एफ कमांडो ने पाकिस्तान की ओर 6 दिसंबर 1971 की शाम 6-7 बजे कूच किया था। चंद घंटों के बाद 7 दिसंबर 1971 की आधी रात को 10 पैरा स्पेशल फोर्स के कमांडो ने पाकिस्तान के छाछरो पर कब्जा कर लिया था। पूर्व पैरा कमांडो बताते हैं 5 दिसंबर 1971 को वह यहां से रवाना हुए और बाड़मेर के सीमावर्ती गांव से बाखासर पहुंचे थे। इस गांव में बलवंत सिंह बाखासर जो कि उस समय डकैत थे। उनके पास रण क्षेत्र के चप्पे चप्पे की जानकारी थी। बलवंत सिंह ने देखा कि सेना आई है तो बाखासर के रण से पाकिस्तान तक पहुंचने का पूरा रास्ता बताया। गाड़ियों से कुछ कमांडो चार घंटे में छाछरो पहुंचे थे। कुछ कमांडो पैराशूट से छाछरो में उतरे। वहां पाकिस्तान की सेना से कुछ संघर्ष हुआ था। भारत की सेना पाकिस्तान के 100 किलोमीटर अंदर तक मीरपुर खास पार कर सिंध की तरफ बढ़ रही थी। सिंध के सामरिक महत्व वाले इलाके छाछराे पर कब्जा कर लिया था। वहां सैकड़ों गांवों तक यह पता चल गया भारतीय सेना पाकिस्तान में पहुंच चुकी है। पाकिस्तान के सौ किलोमीटर अंदर घुस कर 80 हजार वर्ग किलोमीटर की जमीन पर भारत ने कब्जा कर लिया था। कब्जा करते ही हमारी फोर्स ने वहां तिरंगा लहरा दिया था। थाना करवा दिया था खाली
पूर्व पैरा कमांडो ने बताया कि वहां खेमसर थाना था, उसे खाली करवा दिया था। वहां भारत के लोगों को बंदी बना रखा गया था। सबसे पहले उन्हें छुड़वाया था। अल सुबह 3 से 4 बजे के करीब छाछरो पर कब्जा कर लिया था। वहां मौजूद पाक रेंजरों को बंदी बनाया, हालांकि कुछ भाग निकले थे। आगे बहावल नगर पहुंचे तो वहां आधा घंटा आमने-सामने भीषण युद्ध हुआ था। हमारी सेना ने जीत हासिल कर ली। इसके बाद 10 पैरा कमांडो को जोधपुर भेजा गया था। जोधपुर से हमारी टुकड़ी कच्छ भुज रवाना हुई थी। वहां पहुंचने से पहले ही सीजफायर हो गया था। दुश्मन के पीछे जाकर जंप कर अटैक करते
मालम सिंह बताते हैं पैरा कमांडो हथियारों से लैस होकर दुश्मन के ऊपर हेलिकॉप्टर से जंप करते थे। उस समय सेना का एक ही ध्येय था, करो या मरो। पहले युद्ध आमने-सामने फायरिंग का हुआ करता था। अब ऑपरेशन सिंदूर के बाद जो युद्ध के हालात देख रहे हैं, वह अब ड्रोन और मिसाइल के हो गए हैं। अब सेनाएं काफी हाईटेक हो गई हैं। ऊंट पर पानी लेकर सैनिक के साथ चलते थे
रामसर गांव के ही दीपाराम (80) वह शख्स हैं, जिन्होंने 2 युद्ध में सेना की मदद की। बताते हैं 1971 की लड़ाई में मैं ऊंट पखाल दस्ता लेकर पाकिस्तान के अंदर सेना के साथ गया था। रण के चप्पे-चप्पे से वाकिफ था। आज भी पूरा रास्ता जानता हूं। जोश से लबरेज होकर दीपाराम बोले- आज भी मुझे पूरा रूट याद है, जब सेनाओं ने पाकिस्तान पर कब्जा जमाया था। मौका मिलेगा तो मैं फिर से फौज के साथ पाकिस्तान की सीमा में जाऊंगा और युद्ध लडूंगा। जब भी सेनाओं की मूवमेंट देखता हूं, इस बुढ़ापे में भी उन्हें सैल्यूट करता हूं। उम्र 80 साल है, लेकिन जोश आज भी वैसा ही है। जवानी में मुनाबाव से गुजरात तक के बॉर्डर तक कवर करता था, तारबंदी बाद में हुई थी। पाकिस्तान को सबक सिखाना जरूरी
गांव रामसर के पूर्व सैनिक कुपाराम कारगिल युद्ध में हिस्सा ले चुके हैं। कहते हैं पाकिस्तान बहुत खुराफात करता है। वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आएगा। पाकिस्तान को सबक सिखाना जरूरी है। वो देश भारत के लिए कैंसर है। जिस तरह कैंसर का रोग हानिकारक होता है, पाकिस्तान भी उतना ही हानिकारक है। इसका सफाया जरूरी है। अभी भी आपने देखा कि 3 घंटे बाद ही सीज फायर तोड़ दिया। यह कभी नहीं मानेगा। एक बार अच्छे से सबक सिखा दो या तो पाकिस्तान का नाम मिट जाएगा या फिर घुटने टेक देगा। गांव के समंदर सिंह ने बताया कि उसके पिता और चाचा भी 19 71 की लड़ाई में शामिल थे। अभी हालात देख कर उन्होंने आस-पास के सभी गांवों में अलग-अलग ग्रुप बनाकर लोकल आर्मी तैयार कर ली थी, जो कि भारतीय सशस्त्र सेना के लिए हर संभव सहायता के लिए तैयार है। रामसर के सरपंच गिरीश खत्री ने बताया कि ब्लड की जरूरत हो या वाहनों की या नर्सिंग स्टाफ या फिर खाने-पानी की। इन सभी व्यवस्थाओं के लिए पूरा गांव हमेशा तैयार रहता है। ताजा हालातों को देखते हुए सभी व्यवस्थाओं के लिए अलग-अलग टीमें तैयार की थी। आज अगर 6 महीने लगातार भी युद्ध चले तो हम भारतीय सेना के साथ हर व्यवस्था कि लिए खड़े हैं। बॉर्डर के निवासियों में कोई डर नहीं है। जज्बा है देश के लिए कुछ कर दिखाने का। …………………………………………….. सीजफायर के बाद बॉर्डर से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें- राजस्थान के बॉर्डर पर क्या है हालात:भास्कर के 10 रिपोर्टरों की आंखों देखी, युद्धविराम के बाद बाड़मेर और जैसलमेर में धमाके भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम की घोषणा के पहले और बाद में बॉर्डर पर क्या हालात हैं? भास्कर के 10 रिपोर्टर सबसे संवेदनशील पांच जिलों में मौजूद हैं। उन्होंने पहले और बाद के हालात की आंखों देखी बयां की। शुक्रवार रात और शनिवार रात को इन इलाकों में कोई खास अंतर नहीं आया है। पढ़ें पूरी खबर… बाड़मेर-बीकानेर समेत 4 जिलों में ब्लैकआउट:जोधपुर में आज स्कूल-कॉलेज बंद; राजस्थान में रद्द की गईं 16 ट्रेनें समय से चलेंगी राजस्थान के बॉर्डर वाले जिलों बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर और श्रीगंगानगर में रविवार रात ब्लैकआउट रहा। जैसलमेर में शाम 7.30 बजे से सुबह 6 बजे तक, बीकानेर में शाम 7 से सुबह 5 बजे तक, श्रीगंगानगर में शाम 7 बजे से सूर्योदय तक और बाड़मेर में रात 8 बजे से सुबह 6 बजे तक ब्लैकआउट रहा। पढ़ें पूरी खबर…
