टॉप बैठक में क्यों नाराज हुए चर्चित मंत्री?:धार्मिक कार्यक्रम में सत्ताधारी विधायक का अपमान, प्रमोशन लिस्ट के बाद बड़े अफसरों का दर्द

नेताओं और अफसरों के बीच टकराव नई बात नहीं है, लेकिन यह टकराव मंत्री बनाम अफसर हो जाए तो मामला अलग हो जाता है। सरकार के एक अहम विभाग में अब मंत्री-अफसर का टकराव शुरू हो चुका है। चर्चित महकमे के मंत्री ने विभाग के वरिष्ठ अफसर के खिलाफ लिखित में शिकायत की है। अफसर और मंत्री दोनों ही तेजतर्रार हैं। अब एक म्यान में दो तलवार कैसे हो सकती हैं? अफसर के पास बड़ी जगह काम करने का अनुभव है और उनका मिजाज समझौते वाला नहीं है। इस कारण से मंत्री और अफसर के बीच कोल्ड वॉर चल रहा है। सत्ता के गलियारों में मंत्री के मुखिया को दो बार लेटर लिखकर शिकायत करने की बातें हो रही हैं। अब अगली तबादला लिस्ट का इंतजार है। अफसर अगर महकमे में रहते हैं या बदलते हैं, इससे मंत्री और अफसर का कद तय होगा। जिले का अफसर सरकार पर भारी, मंत्रियों की भी करवाई किरकिरी
एक सीमावर्ती जिले के अफसर की राजधानी के सियासी और प्रशासनिक गलियारों तक चर्चा हो रही है। जनता की सेहत से जुड़े महकमे के अफसर ने कई मंत्रियों की सियासी सेहत बिगाड़ रखी है। सत्ता वाली पार्टी के जिले के मंत्री और स्थानीय नेताओं ने सरकार बदलते ही इस अफसर को हटाने की मुहिम चलाई। सरकार ने अफसर को हटाया तो कोर्ट से स्टे ले आए। कोर्ट से स्टे लाने में भी अफसर ने कई सत्ताधारी नेताओं का ऐसा इस्तेमाल किया कि उन्हें पता ही नहीं लगा। जिले के मंत्री ने पिछले दिनों हुई बैठक में प्रदेश के मुखिया तक से अपना दुखड़ा रोया। इस अफसर के कारण दो मंत्रियों को सफाई देनी पड़ी, लेकिन अफसर अभी तक अपने पद पर बरकरार हैं। सत्ता वाली पार्टी के कई नेता अब इस बात पर नाराजगी जता रहे हैं कि एक अफसर पूरी सरकार पर कैसे भारी हो सकता है, लेकिन फिलहाल तो यही हो रहा है। टॉप बैठक में क्यों नाराज हुए चर्चित मंत्री?
पिछले दिनों राजधानी में हुई टॉप बैठक में पिछले राज के दौरान मौजूदा सत्ताधारी पार्टी के नेताओं पर दर्ज मुकदमे अब तक वापस नहीं होने पर एक मंत्री ने जमकर नाराजगी जताई। मंत्री ने खुद का दर्द तो जाहिर किया ही, खुद मंत्रियों के खिलाफ दर्ज मुकदमे तक वापस नहीं होने का मुद्दा उठाकर हलचल पैदा करने की कोशिश की। चर्चित मंत्री एसआई भर्ती रद्द नहीं करने पर पहले से ही नाराज हैं। अब सियासत में जो होता है वो दिखता नहीं है और जो दिखता है वो होता नहीं है। सियासत की इस अजब लीला के फेर में फंसे मंत्री भी हार मानने को तैयार नहीं हैं। धार्मिक कार्यक्रम में किसके इशारे पर सत्ताधारी विधायक का अपमान?
राजनीति में काम करने वालों के व्यवहार और सार्वजनिक संवाद में संयम की हर कोई उम्मीद करता है। पिछले कुछ समय से सियासी व्यवहार में आ रही गिरावट पर कई पुराने संजीदा लोग चिंता भी जताते आए हैं। पिछले दिनों सत्ताधारी पार्टी के विधायक को खुद की पार्टी के लोगों से ही गिरावट का शिकार बनना पड़ा। राजधानी में एक धार्मिक कार्यक्रम में प्रदेश के मुखिया भी शामिल हो रहे थे। कार्यक्रम में सत्ता वाली पार्टी के विधायक भी थे। एक विधायक आगे बैठे थे। विधायक को व्यवस्था संभाल रहे एक कार्यकर्ता ने बिना पहचाने ही रुखे अंदाज में पीछे बैठने को कहा। परिचय देने पर भी बहुत रुखा बर्ताव किया, जिसकी उम्मीद कोई नहीं करता। इस बर्ताव की गिरावट को कई ने देखा। इस घटना के बाद अब तरह तरह की चर्चाएं हैं, लेकिन बढ़ते ओछेपन पर दुख जताने के अलावा किसी ने कुछ नहीं किया। नए साल की प्रमोशन लिस्ट के बाद अंदरखाने बड़े अफसरों का दर्द
नए साल से पहले इस बार भी बड़े अफसरों के प्रमोशन हुए। प्रमोशन की लिस्ट देखकर कुछ बड़े अफसर परेशान थे। टॉप पर प्रमोट होने वाले अफसर इस बार कम थे। ब्यूरोक्रेसी के मुखिया वाली पे स्केल में केवल दो प्रमोशन हुए। दो प्रमुख दावेदार इस बार रह गए। दोनों अफसर पिछले राज में प्राइम पोस्ट पर थे। अब प्रशासनिक गलियारों में तरह-तरह की बातें हो रही हैं। नई-नई बातें भी सामने आ रही हैं। इस बार टॉप पर प्रमोशन के दो-दो ही पद थे, हालांकि पहले टॉप वाले पदों पर दोगुने तक प्रमोट हुए हैं। जमीनों से जुड़े अफसरों की टॉप तक शिकायत
जमीनों से जुड़े अफसर और नेता आजकल सियासी और प्रशासनिक गलियारों में एक चर्चित शब्द बन चुका है। डाउन टू अर्थ जैसी सम्मानजनक उपमा के हिंदी अनुवाद का इन दिनों मतलब ही अलग हो गया है। हाल ही में जमीनों से जुड़े अफसरों की शिकायत टॉप तक पहुंची है। शिकायत भी एक थाने के मुखिया ने की है। साथ ही खुद को उस इलाके से हटाने तक का आग्रह भी किया है। यह बात लीक हो गई और सियासी-प्रशासनिक गलियारों के जानकारों तक पहुंच गई। सुनी-सुनाई में पिछले सप्ताह भी थे कई किस्से, पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें मुखिया ने 250 किलोमीटर खुद चलाई गाड़ी:अफसर को मंत्री समझकर कर दिया स्वागत; पूर्व मुखिया से सार्वजनिक रूप से बचने की मजबूरी