रेगिस्तानी इलाकों में हलकी नमी और हलकी बारिश के बाद टिड्डियों का खतरा बढ़ने लगता है। अगर टिड्डियों का झुंड आ गया तो वो 25 दिन में अपनी संख्या हजार गुना तक फैला लेती है। आम आदमी कई बार पहचान भी नहीं पाता कि ये टिड्डी है या ग्रास हॉपर। मगर मुंबई के 17 साल के इशान ने एक ऐसा एप और ड्रोन बनाया है, जिससे ना सिर्फ टिड्डी की पहचान होगी, बल्कि उसे लाखों हैक्टेयर में एक साथ मारा जा सकता है। 11वीं में पढ़ने वाले इशान मंगलवार को बीकानेर पहुंचे। टिड्डी नियंत्रण विभाग के अधिकारियों के समक्ष उन्होंने अपनी तकनीकी बताई। इशान ने दो ड्रोन तैयार किए हैं। पहला ड्रोन 5 लीटर कैमिकल लेकर पांच हैक्टेयर में कुछ मिनटों में टिड्डी मार देगा। दूसरा तरीका ये है कि एक साथ 100 ड्रोन एक ही जगह से उड़ान भरेंगे। सबके पास 5 से 10 लीटर तक कैमिकल होगा और वे बिना टकराव के अपनी-अपनी सीमा में लाखों हैक्टेयर में फैली टिड्डियों को मार सकते हैं। अच्छी बात ये है कि टिड्डियों को मारने के लिए कैमिकल की जगह नीम ऑयल का उपयोग किया जाएगा। नीम ऑयल से टिड्डी का नर्वस सिस्टम फेल हो जाता है। वो ना कुछ खा पाती है, ना उड़ पाती है। कुछ ही समय पहले इशान ने अंतरराष्ट्रीय रोबोटिक प्रदर्शन में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। ये ड्रोन खुद इशान ने तैयार किया। जो सिर्फ 70 हजार रुपए में बनकर तैयार हो सकता है। फिलहाल इशान के पास ऐसी तकनीकी है जिसमें सामने टिड्डी होने पर उसकी फोटो खीचकर एक एप के जरिए पहचान हो सकती है। फोटो डालते ही वो एप बता देगा कि ये कौन सी टिड्डी है और किस उम्र की है। झुंड में है या अकेली है। ये एप भी इशान ने खुद ही तैयार किया है। मगर अब वो ऐसी तकनीकी पर काम कर रहे जिससे एक महीने पहले ही ये पता लग जाएगा कि देश में कौन से हिस्से में टिड्डी दल का हमला हो सकता है। इससे प्रशासन और किसानों को बचाव की तैयारियों का समय मिल जाएगा। इशान कहते हैं कि जब वे 9वीं कक्षा में थे तब से ही इसमें रुचि है। आने वाले वक्त में वे टिड्डी पर ऐसा काम करना चाहते है, जिससे भारत को किसी भी स्तर पर विदेशी टेक्नोलॉजी पर निर्भर ना रहना पड़े। उन्होंने कहा कि पश्चिमी राजस्थान और गुजरात के कच्छ इलाके टिड्डी को लेकर सेंसटिव इलाके हैं। टिड्डी ऑफिस के अधिकारी नवीन भार्गव समेत तमाम अधिकारी भी इशान से मिले।
