जंगल में जन और जानवर की जंग:बाघों ने 9 इंसान, 2000 मवेशियों को मारा, फिर भी गांव नहीं छोड़ रहे 480 परिवार

बाघों की बढ़ती संख्या, कम विचरण क्षेत्र और इंसानों के साथ संघर्ष को देखते हुए चलाई जा रही विस्थापन मुहिम रणथंभौर टाइगर रिजर्व क्षेत्र में अधर में फंसी नजर आ रही है। यहां के क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट में बसे गांवों से बीते दो साल में एक भी परिवार विस्थापित नहीं हुआ है। जबकि बीते 5 साल में गांवों में बाघों के हमले में 9 लोग और 2 हजार से ज्यादा मवेशी मारे जा चुके हैं। भास्कर ने रणथंभौर के इन गांवों में पड़ताल की तो विस्थापन ठप होने की दो बड़ी वजह सामने आईं। पहला- जो परिवार स्वैच्छिक विस्थापन प्रक्रिया से गुजर रहे गांवों में शेष हैं, उन्हें मुआवजे के विकल्प मंजूर नहीं है। दूसरा- यहां अधिकांश परिवार पशुपालक हैं। इन्हें वन क्षेत्र से बाहर आने के बाद आजीविका के साधन खत्म हो जाने का डर है। एनटीसीए के डेटा अनुसार 2008 से यहां के 17 गांवों के करीब 2250 परिवारों में से 1770 तो शुरुआती दौर में विस्थापित हो गए, लेकिन 12 गांव में तकरीबन 480 परिवार अब भी शेष हैं। प्रदेश में जो गांव विस्थापन की प्रक्रिया में हैं, उनमें सबसे बड़ा गांव हिंदवाड़ भी रणथंभौर में है। भास्कर Expert- डॉ. धर्मेंद्र खांडल, कंजर्वेशन बायोलॉजिस्ट एवं सदस्य, टाइगर वॉच 10 घर भी रह गए तो न बाघों का फायदा, ना इंसानों का क्रिटिकल हैबिटेट के किसी गांव में यदि 10 परिवार भी शेष रह जाएं तो योजना का उद्देश्य पूरा नहीं होगा। अब जो परिवार यहां हैं, उनके पास बड़ी जमीन है या बड़ी संख्या में मवेशी। अधिकांश परिवार आमदनी के लिए मवेशियों पर निर्भर हैं। वन क्षेत्र में इनके पशुओं को चारा मिल जाता है। जबकि बाहर मुफ्त में इतनी मात्रा में चारा उपलब्ध नहीं हो पाएगा। घाटे का सौदा लग रहे मुआवजे के ये विकल्प विकल्प 1ः इसमें 21 वर्ष से ज्यादा के हर व्यक्ति को एक परिवार माना है। हर परिवार को 15 लाख मुआवजे का प्रावधान है। अप्रैल 2021 तक ये मुआवजा राशि सिर्फ 10 लाख थी। अब इसलिए स्वीकार नहीं: जिनके पास जमीन-पशु कम थे या नहीं थे, उन्होंने विकल्प 1 शुरुआती दौर में ही चुन लिया था। लेकिन जिनके पास जमीन-पशु ज्यादा थे, उन्हें ये पैकेज नहीं पसंद आया। जैसे मुंद्राहेड़ी में रहने वाले संजय गुर्जर और उनके परिवार को। संजय ने बताया कि 15 लाख मुआवजा उनके लिए कम है। यह राशि 40 लाख तक हो तो जरूर विस्थापित होंगे। इसके अलावा कई परिवार ऐसे भी हैं, जो बच्चों के 21 साल का होने के इंतजार में यहीं डटे रहे। ताकि उनके नाम पर भी मुआवजा ले सकें। लेकिन सर्वे जब हुआ था, उम्र तबकी मानी जाएगी। हिंदवाड़ के सत्यनारायण तो खुदका मुआवजा लेने के बाद अब बच्चों के नाम मुआवजा मांग रहे हैं। वहीं कन्हैया का कहना है कि लोग जंगल क्षेत्र से बाहर गए तो पशु कहां चराएंगे। इसलिए भी नहीं जाते। विकल्प 2ः परिवार को 3.75 लाख रुपए। साथ में संरक्षित क्षेत्र में 1.6 हेक्टेयर कृषिभूमि और 5400 वर्ग फीट प्लॉट परिवार के नाम मानकर, उसके डिस्ट्रिक्ट लेवल कमेटी (डीएलसी) रेट अनुसार, उतनी कीमत की कृषिभूमि व प्लॉट संरक्षित क्षेत्र से बाहर देने का प्रावधान। हालांकि सितंबर 2022 से पहले परिवार को बाहर सीधा 1.6 हेक्टेयर कृषिभूमि और 5400 वर्ग फीट प्लॉट देने का प्रावधान था। अब इसलिए स्वीकार नहींः क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट में जमीन की कीमत, बाहरी या शहर से लगे क्षेत्रों की तुलना में काफी कम है। ऐसे में डीएलसी रेट से जमीन देने के नियम के बाद परिवारों को वन क्षेत्र से बाहर कम जमीन मिल पा रही है। आकर्षक पैकेज पर ही परिवार विस्थापित हो सकेंगे
“अब जो परिवार हैं, वे इस मुआवजा राशि या पैकेज में राजी नहीं हैं। आकर्षक पैकेज मिले तो ही ये विस्थापित हो सकेंगे।”
-अनूप केआर, मुख्य वन संरक्षक, सवाई मधोपुर