कांग्रेस के बनाए 17 जिलों में 9 ही क्यों हटाए:भाजपा के गढ़ को नहीं छेड़ा, कांग्रेस के गढ़ से संभाग भी छीना, सबसे बड़ा फैसला या सबसे बड़ी चुनौती?

राजस्थान में नौ जिले और तीन संभाग कम होने से सिर्फ प्रदेश का भूगोल ही नहीं बदला, बल्कि कई परसेप्शन भी बदल गए। कड़ाके की ठंड में सियासी तूफान का असर राज्य की राजनीति में लंबे समय तक देखने को मिलेगा। यह भजनलाल सरकार का अब तक का सबसे बड़ा फैसला है। इससे कुछ मिथक टूटेंगे तो सरकार की कई चुनौतियां भी बढ़ेंगी। अब तक धारणा थी कि भजनलाल सरकार बड़े फैसले नहीं ले पाती। ऐसे में ये फैसला सरकार का परसेप्शन बदलने वाला साबित हो सकता है। वहीं सबसे बड़ा फैसला सबसे बड़ी चुनौती भी बन सकता है। राजस्थान में विपक्ष बहुत आक्रामक है। संभाग और जिलों को खत्म करने का कई जगह भारी विरोध भी हो सकता है। ये परीक्षा की तरह होगा। सरकार के पास यू-टर्न लेने का मौका नहीं है। फैसले के बाद कई सवाल उठ रहे हैं। एडिटर व्यू में इन सभी प्रश्नों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं… 1. नौ जिलों और तीन संभागों को कम करने के पीछे राजनीति रूप से क्या ध्यान रखा गया है? भजनलाल सरकार ने कुछ चीजों का विशेष ध्यान रखा है। पार्टी का जहां जनाधार है और जहां मजबूत पकड़ है, उन जिलों को बरकरार रखा गया है। जैसे, मारवाड़ भाजपा का गढ़ है। फलोदी और बालोतरा को लंबे समय से जिला बनाने की मांग थी। कांग्रेस राज में ये जिले बने भी, फिर भी यहां कांग्रेस नहीं जीती तो इन्हें नहीं छेड़ा। सलूंबर में भी पार्टी ने अभी उपचुनाव जीता है। मुख्यमंत्री भरतपुर से आते हैं तो डीग को बरकरार रखा गया है। ब्यावर, खैरथल- तिजारा में पार्टी मजबूत है। वहां भी किसी तरह का कोई रिस्क नहीं लिया है। यानी इस फैसले के पीछे इस बात का पूरा ध्यान रखा गया कि कोई बड़ी चुनौती नहीं आए। डीडवाना में हालांकि पार्टी चुनाव नहीं जीत पाई, लेकिन उन्हीं के बागी पूर्व मंत्री युनूस खान चुनाव जीते थे। ऐसे में इलाके को साधने के लिए जिले का दर्जा बरकरार रखा गया है। डीडवाना–कुचामन जिले में आने वाली नावां सीट से विजय सिंह चौधरी सरकार में मंत्री हैं। 2. सरकार ने फैसले में किन चीजों का ध्यान रखा? जिलों और संभाग को बदलने में कई तरह के गणित का ध्यान रखा गया है। शेखावाटी कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा भी यहां से आते हैं। भाजपा की यहां पकड़ कमजोर मानी जाती है। सीकर से संभाग मुख्यालय और नीमकाथाना से जिले का दर्जा छिन गया, जबकि दोनों की लंबे समय से डिमांड थी। इसी तरह बांसवाड़ा में पार्टी मजबूत नहीं है। यहां से संभाग मुख्यालय वापस ले लिया गया। अनूपगढ़, सांचौर के पीछे भी ये ही वजह है। हालांकि जिला बनने के बाद सांचौर में कांग्रेस नहीं जीत पाई थी। पाली में संभाग मुख्यालय बनाने की डिमांड नहीं थी, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि बिना मांगे उन्होंने संभाग दे दिया। 3. जिलों और संभागों को कम करने के पीछे कोई बड़ी वजह? गहलोत सरकार के 17 जिलों की घाेषणा के साथ ही भाजपा इसके विरोध में थी। कुछ जिलों को लेकर जनता का एक वर्ग भी पक्ष में नहीं था। जैसे राजस्थान में दूदू सबसे छोटा जिला था। ये तहसील के बराबर था। यहां के एसपी मजाक में कहते थे कि वो दो थाने के ही एसपी है। भाजपा ने सरकार बनने से पहले ही वादा किया था कि वह गैर जरूरी जिलों को कम करेगी। सरकार इन जिलों को पहले ही कम करने का फैसला कर चुकी थी, लेकिन पहले लोकसभा चुनाव और फिर राजस्थान के उपचुनाव के कारण ये फैसला नहीं हो पाया। 4. क्या इस फैसले से कोई फायदा होगा? ये पूरी तरह से राजनीतिक मामला है। अभी चुनाव दूर है, इसलिए इस फैसले का फायदा और नुकसान बाद में समझ आएगा। आमतौर पर सरकारें इस तरह के फैसले लेने से बचती हैं, लेकिन भजनलाल सरकार का ये बड़ा फैसला है। विपक्ष कई जिलों में इसे बड़ा मुद्दा बनाएगा और लंबे समय तक सरकार के सामने चुनौती खड़ी रखेगा। हालांकि एक फायदा ये भी है कि सरकार का परसेप्शन मजबूत होगा कि वह जो कहती है, वह करती है। 5. सबसे ज्यादा नुकसान कहां होगा? भाजपा के लिए शेखावाटी शुरू से कमजोर है। यहां पर सीकर से संभाग मुख्यालय और नीमकाथाना को जिला मुख्यालय से हटाने का फैसला सबसे ज्यादा नुकसानदेय दिख रहा है। क्योंकि सीकर को संभाग और नीमकाथाना को जिला बनाने की मांग लंबे समय से थी, ऐसे में यहां चुनौती बढ़ सकती है। जालोर से अलग होकर बनाए गए सांचौर जिले को हटाने को लेकर अभी से लामबंदी शुरू हो चुकी है। पहले भी भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ और अन्य भाजपा नेता घिर चुके हैं। ऐसे में यहां जिला कम करने से चुनौती पैदा हो सकती है। शाहपुरा और अनूपगढ़ में भी विरोध है। 6. सांचौर, जोधपुर और जयपुर ग्रामीण और दूदू में तो भाजपा मजबूत है फिर ये फैसला क्यों लिया? सांचौर जिला बनने के बाद दो तरह की चीजें थीं। यहां भीनमाल को जिला बनाने की मांग थी। सांचौर बनने से जालोर का एक इलाका नाराज था। दूसरा दोनों पार्टियों के लिए ये प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था। दूदू से उपमुख्यमंत्री प्रेम चंद बैरवा आते हैं, लेकिन जिला बनने के बाद से लोग जयपुर के साथ रहने के पक्षधर थे, इसलिए इसे आसानी से हटा दिया गया। जयपुर ग्रामीण और जोधपुर ग्रामीण की जनता भावनात्मक रूप से इनके नाम से जुड़ी हुई थी। 7. क्या सरकार फैसले काे बदल सकती है? कैबिनेट में फैसला हो चुका है, अब सरकार को अपने फैसले पर रहना मजबूरी है। क्योंकि ऐसा करने पर सरकार पर यू-टर्न लेने वाला सरकार का ठप्पा लगने का खतरा रहता है। पहले कई मामलों में विपक्ष यू-टर्न के आरोप लगा चुका है। अब नोटिफिकेशन जारी होने के बाद पुराने जिले खत्म हो जाएंगे और नए जिलों की सीमाओं का सीमांकन हो जाएगा। 8. क्या विपक्ष इसे मुद्दा बनाएगा? आगे क्या हो सकता है? पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा सहित विपक्ष के नेताओं की जिस तरह की प्रतिक्रियाएं आईं, उसे देखकर लगता है कि विपक्ष आक्रामक है, उसे बड़ा मुद्दा मिल गया है, जिसे वो चार साल तक भुनाएंगे। विधानसभा का सत्र शुरू होने वाला है। जिलों को कम करने को लेकर विपक्ष सरकार को घेरेगा। आगामी पंचायत और निकाय चुनाव में इसका असर देखने को मिल सकता है। 9. एसआई भर्ती परीक्षा रद्द करने और अन्य फैसलों का क्या? एसआई भर्ती परीक्षा को लेकर सरकार कह चुकी है कि वह कोर्ट के फैसले के आधार पर फैसला करेगी। ऐसे में अभी बड़ा सवाल है कि क्या भर्ती रद्द होगी? सरकार इस मामले में अनिर्णय की स्थिति में है। हालांकि इतना तय है कि आगामी कैबिनेट की मीटिंगों में गहलोत सरकार के अंतिम छह माह के कामकाज के रिव्यू सहित अन्य फैसले हो जाएंगे। ….. राजस्थान में 9 जिले खत्म करने से जुड़ी ये खबरें भी पढ़िए… 1. गहलोत के बनाए 9 जिले-3 संभाग भजनलाल ने खत्म किए:21 महीने पहले बने थे; सरकार ने कहा- उपयोगिता नहीं थी, कांग्रेस बोली- फिर बनाएंगे कांग्रेस सरकार के वक्त बने नए जिलों में से 9 जिलों और 3 संभागों को भजनलाल सरकार ने कैंसिल कर दिया है। अशोक गहलोत ने मार्च 2023 में इन जिलों और संभागों को बनाने का ऐलान किया था। पूरी खबर पढ़िए… 2. गहलोत बोले-डीग भरतपुर से 35 किलोमीटर,उसे खत्म क्यों नहीं किया?:डोटासरा ने कहा- दूदू खत्म कर डिप्टी सीएम को निपटा दिया भजनलाल सरकार के कांग्रेस राज में बने 9 जिले और 3 संभाग खत्म के फैसले पर राजनीतिक वार शुरू हो गया है। पूर्व सीएम अशोक गहलोत, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने विरोध जताया है। पूरी खबर पढ़िए…